सोयाबीन पौष्टिकता से भरी एक प्रमुख तिलहन-दलहन फसल है। विश्वभर में सोयाबीन की खेती वैज्ञानिक पद्धति से की जाती है। इसलिए अमेरिका, चीन, अर्जेंटिना आदि देशों की उत्पादकता हमारी उत्पादकता से दुगुनी है। हम भी विकसित देशों की तुलना में उन्नत पैदावार पा सकते हैं, इसके लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाना जरूरी है। इनमें मुख्य तरीके निम्नलिखित है।
जमीन की तैयारी
गर्म में आड़ी-खड़ी गहरी जुताई करके पाटा घुमाकर खेत को समतल बनाएं।
पर्याप्त पौध संख्या
एक वर्ग मीटर में 40 पौधे के हिसाब से प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 4 लाख पौधे होना जरूरी है। एक पौधा 7 से 12 ग्राम तक पैदावार देता है।
बुआई के समय -प्रजाति का चयन
जून 15 से जून अंत तक मध्यम से अधिक अवधि में पकने वाली प्रजाति अपनायें। जुलाई प्रथम सप्ताह के लिए मध्यम अवधि, दूसरे सप्ताह के लिए कम अवधि में पकने वाली प्रजाति का चयन करें। जुलाई 20 के बाद सोयाबीन की बुआई नहीं करें। बीज दर प्रजाति की अंकुरण क्षमता पर निर्भर करती है इसलिए अंकुरण परीक्षण करके ही बीज दर तय करें।
बीज उपचार
अंकुरण प्रतिशत बढ़ाकर त्वरित-स्वस्थ अंकुरण के लिए, अधिक जड़ों का निर्माण-फैलाव, अंकुर की जीवनी वृद्धि के लिए 25 से 30 किलो बीज में 20 ग्राम हैस को जरुरी पानी में घोलकर बीज उपचार करें। हैस को जैविक, रसायनिक फफूँद नाशक के साथ मिलाकर बीज उपचार कर सकते हैं।
संतुलित आधार खाद
सोयाबीन में स्फूर, पोटाश, नत्रजन, सल्फर, मेग्नीशियम, जिंक तत्वों का अत्यधिक महत्व है। इसका समतोल उपयोग अवश्य करना चाहिए। प्रति एकड़ 8 किलो नत्रजन, 32 किलो स्फुर, 8 किलो पोटेशियम अनुशंसित है। इसके लिए प्रति एकड़ 40 किलो डीएपी (DAP) 15 किलो पोटाश, 5 किलो बेन्टोसल्फ, 5 किलो सन्निधि, 5 किलो श्रीजिंक आधार खाद के रुप में प्रयोग करें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की वृद्धि फसल से ज्यादा तेजी से होती है। इसके कारण पौध विकास बाधित होता है। सही समय पर खरपतवार नियंत्रण करना अति जरूरी है। अंकुरण पश्चात उपयोग में आने वाले खरपतवार नाशक के उपयोग से सोयाबीन फसल पर अनचाहा तनाव (पीलापन,वृद्धि स्थगन) पड़ता है। इसके चलते मुख्य तनों में गठांने, शाखाएं कम बनती है अतः पैदावार में गिरावट आती है। इसकी रोकथाम के लिए खरपतवारनाशी के साथ प्रति एकड़ सिर्फ 40 ग्राम अथवा 200 मि.ली. हैस का उपयोग अवश्य करें।
कीट नियंत्रण
सोयाबीन फसल में सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाला तना मक्खी (Stem fly) रिंग कटर का रोकथाम/नियंत्रण महत्वपूर्ण है। इसके लिए 20 दिन की अवस्था से ही कीटनाशी का उपयोग करें। जरूरत अनुसार समय-समय पर कीट प्रकोप के अनुसार उचित कीटनाशी का प्रयोग करें।
व्याधि नियंत्रण
सोयाबीन फसल में कई प्रकार के फफूँद/जीवाणु/विषाणु जनित रोगो का प्रकोप होता है। इनकी तीव्रता वातावरण की आर्द्रता, जमीन की नमी, तापमान पर निर्भर करती है। समय-समय अनुसार व्याधी नियंत्रण के लिए जरूरी फफूँद नाशी/जीवाणु नाशक का उपयोग करके फसल को व्याधी मुक्त बनाएं रखें। एक पौधा मरने से पैदावार में 7 से 12 ग्राम गिरावट आती है।
पोषण संबंधी तनाव नियंत्रण
फसल में फूल-फली का निर्माण मुख्य तना एवं शाखाओ में बने गठनो पर होता है। समान दूरी पर अधिक संख्या में गठनो का निर्माण होने से सोयाबीन की पैदावार में अच्छी खासी वृद्धि होती है। पौध विकास, फूल निर्माण समय पर पौधों में किसी भी प्रकार के पोषण की कमी/तनाव उत्पन्न न हो, इसलिए 20-25 दिन की अवस्था में प्रति एकड़ 100 ग्राम पेटॉ्न जिंक ईडीटीए, 300 ग्राम अतुल्य,150 मि.ली. पॉवर हाऊस का छिड़काव करें। 40-45 दिन होने पर प्रति एकड़ 250 मिली. प्रथम,150 ग्राम सुबॉन का छिड़काव करें।