प्रयोग किया गया पोषण विपरीत तापमान में अवशोषित नहीं होने के कारण पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा पैदावार में गिरावट आती है। इस स्थिति से निपटने में भी ज्यादातर किसान चूक कर जाते हैं। वे यह समझ बैठते हैं कि हमने अभी तो खाद ड़ाला है जो फसल को मिला होगा।
उपयोग किए गये पोषणों का स्थानांतरण पोषक तत्वों की चलायमान प्रकृति पर निर्भर करता है। पोषक तत्वों दो प्रकार के होते हैं - चलायमान, अचल
पोषण मृदा में पौधों में पोषण मृदा में पौधों में
नत्रजन चलायमान चलायमान लौह अचल अचल
स्फुर अचल चलायमान बॉरान चलायमान अचल
पोटाश अचल चलायमान जिंक अचल चलायमान
सल्फर चलायमान अचल मैंगनीज अचल चलायमान
कैल्शियम अचल अचल कॉपर अचल अचल
मैग्नेशियम चलायमान चलायमान मोलेब्डेनम चलायमान अचल
चलायमान तत्व - पौधे के नये हिस्से में चले जाने के कारण इन तत्वों की कमी पुराने पत्तों में दिखाई देती है।
नत्रजन की कमी - पुराने पत्तों का पूर्णतः पीला पड़ना। (नसों सहित)
स्फुर की कमी -पुराने पत्तों का बैंगनी रंग का होना।
पोटाश की कमी -पुराने पत्तों का किनारे से सूखना। (पत्तों में धब्बे सहित)
मैग्निशियम की कमी -पुराने पत्तों में आंतरिक पीलापन। (नसों में हरापन)
मध्यम चलायमान - इन तत्वों का स्थानांतरण धीमे तथा कम मात्रा में होने से इनकी कमी के लक्षण पौधे के मध्य भाग में दिखाई देता है।
जिंक की कमी -तीसरे चौथे पत्तों में आंतरिक नसों का पीलापन लिए हुए तथा तांबे जैसे रंग के धब्बे के रुप में दिखाई देते हैं।
मैगनीज की कमी -आंतरिक पीलापन लिए हुए भूरे रंग के धब्बे के साथ मध्यम पत्तों में दिखाई देता है।
कॉपर की कमी - मध्य भाग के पत्तों में विकृति।
अचल तत्व -इन तत्वों के चलायमानता न के बराबर होने के कारण इन तत्वों के अभाव में पौधे की नई पत्तियों में या नये हिस्सों में दिखाई देता है।
लौह की कमी -इसकी कमी से पत्ते पीले होते हैं, अग्रशिरा हल्का हरा रहता है। कमी उग्र होने पर पूरे पत्ते सफेद हो जाते हैं।
सल्फर की कमी -इसकी कमी से नये पत्ते पीलेे होते हैं। अत्यधिक कमी से पत्ते गहरे पीलेे (नारंगी) रंग के होते हैं। (नसों सहित )
कैल्शियम की कमी -इसकी कमी से अग्र शिरा की वृद्धि रुक जाती है एवं पत्ते छोटे रह जाते हैं।
बोरॉन की कमी - इसकी कमी से पौधे के अग्र शिरा की शाखाएं छोटी होती है तथा दो शाखाओं में अंतर कम होकर पौधा झाड़ीनुा दिखता है।
यहाँ भी किसान तत्व विशेष के अभाव को सही तरीके से पहचान नहीं कर पाते हैं। पौधे के उपरी हिस्से का पीलापन देखकर अक्सर नत्रजन वाले उर्वरक का उपयोग करते हैं। इससे भी पैदावार पर विपरीत प्रभाव होता है।
इसलिए उन्नत पैदावार पाने के लिए फसल के प्रकार, फसल की अवस्था, जमीन की स्थिति,(खनिजों की घुलनशीलता, विनिमय क्षमता, खनिजीकरण सामर्थ्य, तापमान, चलायमान प्रवृत्ति को जानकर संतुलित पोषण प्रबंधन करना अति आवश्यक है अन्यथा उन्नत बीज भी उन्नत पैदावार नहीं दे सकता।
प्रकाश संश्लेषण क्रिया (फोटो सिंथेसिस)
मनुष्य, मवेशी ऊर्जा के लिए मुख्य रुप से पौधे पर निर्भर है। पौधे में यह ऊर्जा कैसे बनाती है यह जानना भी जरुरी है। प्रकाश संश्लेषण प्रकृति द्वारा रचाई गयी एक अद्भुत प्रक्रिया है जिसे हम आँखों से देख नहीं पाते, लेकिन इसके परिणाम से भलीभांति परिचित है। पौधे द्वारा जमीन से नमी के माध्यम से सोखा गया खनिज पदार्थ पत्तों में एकत्रित होकर पर्ण हरितिमा बनता है। वातावरण से पत्तों द्वारा सोखा गया कार्बन डाई-ऑक्साईड तथा पौधे में मौजूदा पानी को हरा पदार्थ (पर्णहरित) सौर ऊर्जा के सहयोग से कार्बोहाइड्ेट में बदल देता है एवं ऑक्सीजन को वातावरण में छोड़ देता है। इस क्रिया के कारण ही हमें जीवित रहने के लिए जरुरी ऊर्जा (अन्न) एवं ऑक्सीजन उपलब्ध होता है।
अधिक पैदावार के लिए जमीन से जुड़े कुछ मुद्दे
चाहे बीज की आनुवंशिक शुद्धता, उत्पादन क्षमता कितनी भी उन्नत क्यों न हो, लेकिन पैदावार मृदा की उर्वरा शक्ति पर ही निर्भर करती है। इसीलिए जमीन की उर्वरा शक्ति से जुड़े मुख्य वैज्ञानिक मुद्दों पर खास ध्यान रखना होगा। उनमें से मुख्य रुप से
खेती में मृदा की पी.एच. का महत्व
किसी भी माध्यम में (मिट्टी, पानी आदि) मौजूदा हाइड्ोजन H+ की सघनता को पी.एच. कहते हैं। इसका खेती में भी बड़ा महत्व है। 6 से 6.5 पी.एच. मान की मिट्टी में से सभी पोषण पोधे को अधिक मात्रा में आसानी से उपलब्ध होते हैं। इसी कारण से अधिकांश फसल की चाहत की पी.एच मान 6 से 6.5 है। लगातार रसायनिक खादों के उपयोग से इन खादों में मौजूदा हाइड्ोजन जमीन में इकट्ठा होने से मिट्टी के पी.एच. मान में बदलाव आता है, जमीन में समस्त पोषण होने के बावजूद 6 से कम पी.एच. मान की मिट्टी में एन.पी.के. तत्वों की उपलब्धता कम रहती है। 7 से अधिक पी.एच. मान की मृदा में सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता कम रहती है। इससे पौध वृद्धि बाधित होकर पैदावार में गिरावट आती है। मृदा की पी.एच. को 6-6.5 में नियंत्रित करके रखने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। बढ़े हुए पी.एच. को कम करने के लिए प्रति एकड़ 500 मिली. से 1 लीटर प्रथम का प्रयोग करें। 6 से कम पी.एच. वाली मृदा में डोलोमाइट का उपयोग करें।
मृदा में कार्बनः नत्रजन अनुपात
मृदा में मौजूदा कार्बन एवं नत्रजन के अनुपात को सी.एन. रेशियो कहते हैं। यह नत्रजन की उपलब्धता पर सर्वाधिक प्रभाव डालता है। 20:1 से कम अनुपात वाली मृदा में नत्रजन का खनिजीकरण, उपलब्धता बढ़कर 10:1 में अत्यधिक होता है। 20:1 से ज्यादा अनुपात वाली मृदा में खनिजीकरण कम होकर 30:1 में खनिजीकरण में रुकावट आती है। इसी प्रकार कार्बन: फास्फोरस 200:1 से कम होने पर स्फुर का खनिजीकण, उपलब्धता बढ़ता है। इसी प्रकार नत्रजनःसल्फर 200:1 से कम होने पर सल्फर की उपलब्धता बढ़ती है। मृदा की कार्बनःनत्रजन, कार्बनःफास्फोरस,
कार्बनःसल्फर को संतुलित करने के लिए प्रति एकड़ 500 मिली से 1 लीटर ब्लेक गोल्ड का उपयोग करें।
धन आयन विनिमय क्षमता (Cation Exchange Capacity)
अधिकतर खनिज धनआयन ( Cation) वाली होती है तथा मृदा ऋृण आयन वाली होती है। विलोम आयन परस्पर आकर्षित होते हैं। धनआयन मृदा की चिकनाई के साथ जकड़कर पानी के साथ भीतर रिस जाता है। जैवांश कार्बन भी ऋणात्मक आयन वाले हैं। यह यौगिक धनआयन को अपने पास रखकर पानी के साथ रिसने से रोकता है तथा पौधे को अधिक मात्रा में उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। जैवांश घटकों की इस क्षमता को धनआयन विनिमय क्षमता
(Cation Exchange Capacity) कहते हैं। उच्च धनआयन विनिमय क्षमता वाली मृदा (Carbonated Soil) से पौधे समस्त खनिजों को आसानी से अधिक मात्रा में ग्रहण कर लेता है। अपनी मृदा की धनआयन विनिमय क्षमता उच्च स्तर पर बनाये रखने के लिए प्रति एकड़ 100 से 200 ग्राम हैस का उपयोग समय-समय पर करें।