केला उष्ण कटीबंधीय फसल है। केले का उपयोग फल के रुप के अलावा सब्जी, चिप्स तथा स्टार्च निर्माण के लिये किया जाता है। केले के फल में सोडियम, प्रोटीन कम होने के कारण उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी वाले भी इसका सेवन कर सकते है। केला विटामिन बी-6 का सबसे अच्छा स्रोत भी है। यह एक स्वादिष्ट एवं आरोग्य वर्धक फसल है। केले की उत्पादन क्षमता अधिक होने के कारण इस फसल का आर्थिक लाभ भी अधिक है। उन्नत पैदावार के लिए केले की खेती में उन्नत बीज, पर्याप्त पौध संख्या, संतुलित उर्वरक, कीट-रोग नियंत्रण, खरपतवार नियंत्रण, नमी प्रबंधन पर समय पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
तापमान:
केले की खेती के लिए 38 °C का तापमान 75 से 85% सापेक्षा आद्रता अति उत्तम है 18 °C से अधिक तापमान पर केले बढवार शुरु होकर 27 °C पर अत्यधिक वृद्धि पा लेता है। 12 °C से कम तापमान केले के बढ़वार पर विपरीत असर करता है। 38 °C से अधिक तापमान पर केले की वृद्धि बाधित होती है।
जमीन:
उत्तम फलद्रूप, जल निकास वाली, 6 से 7.5 पी.एच. मान का जमीन केले के उन्नत खेती के लिए उपयुक्त है।
समुचित पौध संख्या:
कतार से कतार 6 फीट पौधे से पौधा 5 फीट का अन्तर (1450 पौधा प्रति एकड़) उत्तम है। 45 से.मी. ग 45 से.मी. ग 45 से.मी.आकार का गडड़ा बनाकर उस गडडे़ को उपरी मिट्टी, सेंद्रीय खाद के साथ मिलाकर डालें। पौधे को जमीन सतह से 4 इंच गहरा रोपण करें। कतार उत्तर दक्षिण दिशा में बनाये।
पौध पौषण:
100 ग्राम भोज्य प्रदार्थ केले में 22.85 ग्राम मण्ड, 0.33 ग्राम वसा,1.09 ग्राम प्रोटीन, 22 मि.ली. ग्राम स्फुर, 358 मिली. ग्राम पोटेशियम, 27 मिली. ग्राम मैग्नीशियम, 0.26 मिली. ग्राम लौह, 0.15 ग्राम जिंक तथा 5 मिली. ग्राम कैल्शियम पाया जाता है। 1 टन केले के उत्पादन के लिए 7 से 8 किलो नत्रजन 0.75 से 1.50 किलो स्फुर 17 से 20 किलो पोटेशियम की जरुरत पड़ती है। नत्रजन का 7 प्रतिशत सल्फर उत्पादन बढ़ाने में सहयोगी है । केले की जड़ क्षेत्र जमीन की ऊपरी सतह से 60 से.मी. तक फैला हुआ रहता है। प्रति पौधा 200 ग्राम नत्रजन, 60 ग्राम स्फुर, 300 ग्राम पोटेशियम का उपयोग केले के लिए अनुशंसित है। इनको पाँच भागों में देना ज्यादा बेहतर है -पहला रोपणी के समय, दूसरा रोपणी से 45 दिन बाद, तीसरा 90 दिन बाद, चौथा 135 दिन बाद, पाँचवा 180 दिन बाद प्रयोग करें।
मृदा की जैवांश कार्बन की पूर्ति, उत्तम जड़ विकास के लिए रोपणी के समय1 लीटर ब्लेक गोल्ड प्रति हजारी उपयोग करें। समुचित पौध विकास जमीन की पी.एच. की नियंत्रण के लिए रोपणी के तीसरे एवं चौथे महीने में 200 ग्राम हैस का उपयोग करें। सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति के लिए प्रति हजार 2 किलो श्रीजिंक सुपर पावर, 250 ग्राम सुबॉन, 500 ग्राम सुरक्षा, 10 किलो फेरस 2 से 3 महीने के उम्र में उपयोग करें । ठण्ड के समय 25 किलो मैग्नम का प्रयोग करें। फलन के समय 1 लीटर प्रथम प्रति हजार डे्ंचिंग करें ।
खरपतवार नियंत्रण:
समय - समय पर खरपतवार की नियंत्रण करें (हाथ से या नींदानाशी के जरीये) कुलपा (डोरा) चलाना भी लाभकारी है केला 4 महीने के होने पर मिट्टी चढ़ाये ।
नमी प्रबंधन:
केले की उन्नत पैदावार के लिए नमी प्रबंधन पर विशेष ध्यान रखें। केले को रोजाना पानी की आवश्यकता इस प्रकार रहती है -
जून - 6 लीटर अक्टूबर - 10-12 लीटर फरवरी - 12 लीटर
जुलाई - 5 लीटर नवम्बर - 10 लीटर मार्च - 16-18 लीटर
अगस्त - 6 लीटर दिसम्बर - 10 लीटर अप्रैल - 20-22 लीटर
सितम्बर - 8 लीटर जनवरी - 10 लीटर मई - 25-30 लीटर
कीट नियंत्रण:
निमेटोड़, दीमक से केले को सर्वाधिक नुकसान होता है। इसके लिए रोपणी के समय 250 ग्राम नीम खली प्रति पौधा उपयोग करें ।
व्याधि नियंत्रण:
फ्यूजोरियम विल्ट, सिगटोका मुख्य रुप से केले फसल को ज्यादा हानि पहुँचाता है। इसका रोकथाम के लिए आरंभिक अवस्था में बारी-बारी से अंतर प्रवाही तथा स्पर्शीय फंफूद नाशक का छिड़काव करें।
पोषणों का पर्णीय छिड़काव:
केले की वृद्धि पत्तों का हरापन, लम्बाई, मोटाई, बढ़ाने के लिए केले के रोपणी के 1 महीने बाद 100 लीटर पानी में 50 ग्राम पेटॉ्ऩ 50 ग्राम पेट्यिार्क का छिड़काव करें ।