मूंगफली एक मुख्य तिलहन दलहन फसल है। इस फसल में फूल पौधे की ऊपरी हिस्से और फली पौधे के निचला हिस्से में होती है। मूंगफली का फूल जमीन स्पर्श होने के बाद सूई फली के रुप में विकसित होती है।
100 ग्राम भोज्य प्रदार्थ मूंगफली में
21 ग्राम मंड, 43.45 ग्राम वसा
25 से 28 ग्राम प्रोटीन 336 मिली ग्राम फोस्फोरस
332 मिली ग्राम पोटाश, 186 मिली ग्राम मेग्नेशियम
3.3 मिली ग्राम जिंक तथा 2 मिली ग्राम लौह पाया जाता है।
समस्त पोषणों से परिपूर्ण मूंगफली फसल की उन्नत पैदावार के लिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना अति जरुरी है। मूंगफली की उन्नत खेती से जुड़े कुछ वैज्ञानिक तथ्य -
हवामान:
मूंगफली एक उष्ण कटीबंधीय फसल है । साधरणतः 21 से 26 डिग्री से. वृद्धि अवस्था में तथा पक्वता के समय गरम शुष्क हवामान मूंगफली फसल के लिए ज्यादा फायदेमंद है ।
जमीन:
6 से 6.5 पी.एच. मान की अच्छी जलनिकास वाली रेतीली दुमट मिट्टी मूंगफली फसल के अति उत्तम है ।
बीज उपचार:
मूंगफली फसल को नत्रजन जीवाणु तथा फंफूद नाशक से बीज उपचार करके ही बुआई करें ।
उर्वरक:
अच्छे जैवांश तत्वों के साथ-साथ 30 से 40 किलो नत्रजन, 50 से 60 किलो ग्राम फॉस्फोरस, 30 से 40 किलों पोटॉश प्रति हेक्टर के लिए जरुरी है। फॉस्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा आधारखाद के रुप में बुआई के समय (60 से 70 किलो डी.ए.पी., 30 से 35 किलो पोटाश प्रति एकड़) उपयोग करें। जैवांश तत्वों की पूर्ति के लिए 5 किलो सन्निधि का प्रयोग करें। बढ़ा हुआ पी.एच.मान को कम करने के लिए 500 मिली प्रथम 60 से 70 किलो डी.ए.पी.में मिलाएं।
आरंभिक वृद्धि के लिए 30 दिन होने पर नत्रजन की भुरकाव (अमोनियम सल्फेट / केल्शियम अमोनियम नाइट्ेट) करें। इसके साथ प्रति एकड़ 5 से 7 किलो श्रीजिंक का उपयोग करके सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति करें। मूंगफली फसल में फूल आने पर केल्शियम की पूर्ति निर्बाधित रुप से होती रहे इसका खास ख्याल रखें। इसके लिए जिप्समया केन का उपयोग करें।
खरपतवार नियंत्रण:
अंकुरण पूर्व निंदानाशी का उपयोग मूंगफली की बुआई के 1 दिन बाद करें। उल्टे पाँव चलकर इन निंदानाशियों का उपयोग करें।
नमी प्रबंधन:
समय - समय पर सिंचाई पर विशेष ध्यान दें। पौध वृद्धि, फूल-फली निर्माण, फली विकास अवस्था में पौधे में नमी की कमी ना हो इसका खास ध्यान रखें।
कीट नियंत्रण:
ग्रब्स, दीमक, माहु, पत्ताछेदक, पत्ता मोड़क, मुख्य रुप से मूंगफली फसल को ज्यादा नुकसान पहुँचता है। अनुशंसित कीटनाशियों का उपयोग कीटों की आरंभिक अवस्था से ही करें।
व्याधि निंयत्रण:
उकठा, तना सड़न, टिक्का मुख्य रुप से मूंगफली फसल को अधिक क्षति पहँुचाता है। पैदावार क्षति को रोकने के लिए व्याधि नियंत्रण पर खास ध्यान दें।
पोषणों का छिड़काव:
मूंगफली की उन्नत पैदावार के लिए पोषणों का पर्णय छिड़काव करना अति आवश्यक है। लौह , बॉरान, मेग्नेशियम की पूर्ति के लिए
:-
मूंगफली उगने के
30दिन बाद - 100 लीटर पानी में 500 ग्राम फेरस, 40 ग्राम हैस को मिलाकर छिड़काव करें।
45 दिन के बाद - 500 ग्राम फेरस, 250 मिली प्रथम +500 ग्राम मेग्नम का छिड़काव करें।
60 दिन के बाद - 500 ग्राम फेरस 40 ग्राम हैस, 50 से 75 ग्राम सुबॉन का छिड़काव करें।
75 दिन के बाद - 500 ग्राम फेरस, 75 ग्राम सुबॉन, 250 मिली. प्रथम का छिड़काव करें। इससे पैदावार में अच्छी खासी बढ़ोतरी होती है एवं उत्पाद की गुणवत्ता उच्च स्तर की होती है।